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उदु॑त्त॒मं मु॑मुग्धि नो॒ वि पाशं॑ मध्य॒मं चृ॑त। अवा॑ध॒मानि॑ जी॒वसे॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud uttamam mumugdhi no vi pāśam madhyamaṁ cṛta | avādhamāni jīvase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्। उ॒त्ऽत॒मम्। मु॒मु॒ग्धि॒। नः॒। वि। पाश॑म्। म॒ध्य॒मञ् चृ॒त॒। अव॑। अ॒ध॒मानि॑। जी॒वसे॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:21 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:19» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:21


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह परमेश्वर कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अविद्यान्धकार के नाश करनेवाले जगदीश्वर ! आप (नः) हम लोगों के (जीवसे) बहुत जीने के लिये हमारे (उत्तमम्) श्रेष्ठ (मध्यमम्) मध्यम दुःखरूपी (पाशम्) बन्धनों को (उन्मुमुग्धि) अच्छे प्रकार छुड़ाइये तथा (अधमानि) जो कि हमारे दोषरूपी निकृष्ट बन्धन हैं, उनका भी (व्यवचृत) विनाश कीजिये॥२१॥
भावार्थभाषाः - जैसे धार्मिक परोपकारी विद्वान् होकर ईश्वर की प्रार्थना करते हैं, जगदीश्वर उनके सब दुःख बन्धनों को छुड़ाकर सुखयुक्त करता है, वैसे कर्म हम लोगों को क्या न करना चाहिये॥२१॥चौबीसवें सूक्त में कहे हुए प्रजापति आदि अर्थों के बीच जो वरुण शब्द है, उसके अर्थ को इस पच्चीसवें सूक्त में कहने से सूक्त के अर्थ की सङ्गति पहिले सूक्त के अर्थ के साथ जाननी चाहिये॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे वरुणाविद्यान्धकारविदारकेश्वर ! त्वं करुणया नोऽस्माकं जीवस उत्तमं मध्यमं पाशमुन्मुमुग्ध्यधमानि बन्धनानि च व्यवचृत॥२१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत्) उत्कृष्टार्थे क्रियायोगे वा (उत्तमम्) उत्कृष्टम् (मुमुग्धि) मोचय। अत्र बहुलं छन्दसि इति श्लुः। (नः) अस्माकम् (वि) विविधार्थे (पाशम्) बन्धनम् (मध्यमम्) उत्कृष्टानुत्कृष्टयोरन्तर्भवम् (चृत) नाशय। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (अव) क्रियायोगे (अधमानि) निकृष्टानि बन्धनानि (जीवसे) चिरं जीवितुम्। अत्र तुमर्थे से० इत्यसेन्प्रत्ययः॥२१॥
भावार्थभाषाः - यथा धार्मिकाः परोपकारिणो विद्वांसो भूत्वेश्वरं प्रार्थयन्ते तेषां जगदीश्वरः सर्वाणि दुःखबन्धनादीनि निवार्य्यैतान् सुखयति, तथास्माभिः कथं नानुचरणीयानि॥२१॥चतुर्विंशसूक्तोक्तानां प्राजापत्यादीनामर्थानां मध्यस्थस्य वरुणार्थस्योक्तत्त्वाच्चातीतसूक्तार्थेनास्य पञ्चविंशसूक्तार्थस्य सङ्गतिरस्तीति बोध्यम्॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे धार्मिक लोक परोपकारी व विद्वान बनून ईश्वराची प्रार्थना करतात तेव्हा त्यांच्या सर्व दुःखांना दूर करून जगदीश्वर सुखी करतो तसे कर्म आम्ही का करू नये?